Dear Sir/ Madam,
DEPARTMENTS OF SANSKRIT, ENGLISH, HINDI, PUNJABI & MASS COMM.
OF
SANATAN DHARMA COLLEGE (Lahore), AMBALA CANTT
ACADEMIC SUPPORT – S D ADARSH SANSKRIT COLLEGE, AMBALA CANTT
CORDIALLY INVITE
YOU
TO SHARE YOUR
CRITICAL VIEWS/ IDEAS/ PREJUDICES/ BELIEFS/ VIEWPOINTS/ ATTITUDES
ON THE FOLLOWING TOPIC
CRITIQUE OF BRAAHMIN, BRAAHMINHOOD, BRAAHMINISM
(PART-I)
ON 1ST APRIL, 2015, WEDNESDAY
FROM 10.30AM TO 01.00 PM
IN THE SEMINAR HALL OF THE COLLEGE.
A brief note about the proposed discussion is attached herewith for your kind perusal.
Kindly make sure to respect the time.
Organizers-
Ashutosh Angiras, Dr. Vijay Sharma, Dr. Veena Sharma
Sanskrit Dept., Head, Hindi Dept., Principal & Head, English Dept
0946455867,
Dr. Nirvair Singh Prof. Manish Dr. Vishnu Dutt Sharma,
Head, Punjabi Dept. Head, Mass Com Dept., Principal, S D A Sanskrit College
विषय – ब्राह्मण, ब्राह्मणत्व एव ब्राह्मणवाद की मीमांसा (भाग -१)
स्थान – सेमिनार हाल, एस० डी० कालेज (लाहौर), अम्बाला छावनी
समय – १०.३० प्रातः से १.०० बजे दोपहर तक
दिनाङ्क – १ अप्रैल, २०१५, बुधवार
मान्यवर
उपर्युक्त विषय पर आप विशेषज्ञ वक्ता के रूप में अपने ज्ञान, भाव, अनुभव, सैद्धान्तिक मानववादी एवम् संविधानात्मक पक्ष की दृष्टि से, इतिहास में दलित विमर्श के पक्ष से उपलब्ध तथ्यों के आधार पर निर्द्वन्द्व आलोचना के लिए सादर आमन्त्रित हैं केवल इतना निवेदन के साथ की क्या ब्राह्मण, ब्राह्मणत्व या ब्राह्मणवाद केवल इतना ही है जितना कि आप या मैं जानते हैं या आपके और मेरे जानने के अतिरिक्त और भी कुछ जानना शेष हो सकता है?
यदि आप निश्चित हैं कि ब्राह्मण दलित की दृष्टि से केवल मात्र शोषक, कम्यूनिस्ट के पक्ष से पाखण्डी, पूँजीवादी पक्ष से व्यापारिक लाभ का स्तुतिकर्ता, वैज्ञानिकवाद के पक्ष से भ्रामक, समाजवादी पक्ष से अन्यायी, नास्तिक के पक्ष से ईश्वरवादी या ३३ करोड़ देववादी और आधुनिकतावादी के पक्ष से दकियानूसी, मानवाधिकारवादी के पक्ष से मानवतावादी संस्कृति विरोधी, धार्मिक विश्वासी के पक्ष से अधार्मिक है तो प्रश्न उठता है कि आखिर यह ब्राह्मण या ब्राह्मणत्व या ब्राह्मणवाद वस्तुतः है क्या जिसका विरोध सभी कर रहे हैं । सम्भवतः यह कहना उचित ही होगा कि यदि ब्राह्मण न होता तो इस विरोध में ये इतने सारे प्रतिवादी पक्ष विकसित ही कैसे हो सकते थे? विचित्र बात यह है कि चाहे कोई धर्मवादी हो, आधुनिकतावादी हो, विज्ञानवादी हो, बुद्धिवादी, पूंजीवादी, साम्यवादी आदि हो वह ब्राह्मण विरोध पर आश्रित रहा है। तो क्या मान लिया जाए कि ब्राह्मण केवल मिथ्या, झूठ, छल, फ़रेब पर निर्मित व्यवस्था का अग्रदूत रहा। तो पहली बात यह कि वह व्यवस्था स्थापित कैसे हुई जो इतना खण्डन, विरोध होने पर भी अभी तक विद्यमान है और दूसरी बात इस व्यवस्था को मान्यता मिली कैसे? इस प्रकार बहुत से प्रश्न, शंकाएँ उत्पन्न होती हैं कि यदि मानवता विरोधी ब्राह्मण था तो उसे इतनी मान्यता कैसे मिली? या यह मान लिया जाए कि भारत में कभी कोई तार्किक, ज्ञानवान्, बुद्धिमान् पैदा ही नहीं हुए । और सभी बुद्धिमान, ज्ञानवान १८वीं शताब्दी के बाद उत्पन्न होने लगे? अस्तु यह जान लेना उचित होगा कि यदि ब्राह्मण को अस्वीकृत करना है तो एक बार ठीक से समझ लेना होगा कि आखिर ब्राह्मण है क्या? और क्या ब्राह्मण होने के नाते उसकी कोई सकारात्मक भूमिका मानवीयता को परिभाषित करने में रही या नहीं। क्या भारत के विभिन्न आयामों और ऐतिहासिक अवस्थाओं में उसका कोई योगदान रहा है या नहीं? और यदि कोई योगदान रहा है तो निश्चित उसका कोई तो स्वरूप कोई विचार कोई व्यवस्था तो रही होगी। तो वह क्या रही होगी, और उसके बारे में आपकी और हमारी कितनी जानकारी है और जितनी सूचना है क्या वह पर्याप्त है? और वह सूचना सामग्री कितनी व्यवस्थित है और वह किसी तर्क या अन्य किसी ज्ञान की कसौटियों पर सटीक उतरती भी है या नहीं?
इसी सारे परिप्रेक्ष्य में आप चर्चा करने के लिए सादर आमन्त्रित हैं।
ध्यातव्य – दोषों के उदाहरणों की गिनती से आयोजक परिचित हैं। कोई नवीन दोष आपकी दृष्टि में आता है तो अवश्य चर्चा करें अन्यथा दोषों से आगे की सम्भावनाओं पर विचार करने में सहयोग करें।
कृपया समय का सम्मान करें।
संयोजक एवम् सचिव
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